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जियो थर्मल एनर्जी और भारत में इसका भविष्य

By - Gurumantra Civil Class

At - 2025-09-19 05:19:55

जियोथर्मल एनर्जी (Geothermal Energy) पृथ्वी की आंतरिक गर्मी से प्राप्त होने वाली ऊर्जा है। यह नवीकरणीय ऊर्जा का एक रूप है, जो पृथ्वी के अंदर मौजूद गर्म चट्टानों, ज्वालामुखी गतिविधियों और गर्म जल स्रोतों से उत्पन्न होती है।

 

 यह कैसे काम करती है?

- पृथ्वी की सतह के नीचे गर्म जल या भाप भंडार होते हैं।

- इनसे भाप निकाली जाती है, जो टर्बाइन घुमाकर बिजली पैदा करती है।

- या फिर सीधे हीटिंग के लिए इस्तेमाल की जाती है, जैसे घर गर्म करने में।

 

 फायदे:

- स्वच्छ और पर्यावरण-अनुकूल: CO₂ उत्सर्जन कम होता है।

- लगातार उपलब्ध: मौसम पर निर्भर नहीं।

- लागत-प्रभावी: एक बार सेटअप के बाद कम रखरखाव।

 

 उदाहरण:

- आइसलैंड और न्यूजीलैंड में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है।

- भारत में लद्दाख और गुजरात में कुछ प्रोजेक्ट चल रहे हैं।

 

 लाभ (Benefits)

जियोथर्मल एनर्जी के कई फायदे हैं, जो इसे रिन्यूएबल ऊर्जा का मजबूत स्तंभ बनाते हैं:

पर्यावरण-अनुकूल: यह जीवाश्म ईंधनों की तुलना में न्यूनतम ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद मिलती है। भारत जैसे देशों में नेट-जीरो लक्ष्य को सपोर्ट करता है।

लगातार और विश्वसनीय: मौसम या दिन-रात पर निर्भर नहीं; 24/7 बिजली या हीटिंग प्रदान करता है, जो कोयले से संक्रमण में उपयोगी है।

लागत-प्रभावी लंबे समय में: प्रारंभिक निवेश के बाद कम रखरखाव और ऊर्जा बचत (जैसे हीटिंग/कूलिंग में 50-70% तक)। घरों की वैल्यू बढ़ाता है।

ऊर्जा विविधता: भारत में ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाता है और पानी का कम उपयोग करता है।

 

नुकसान (Disadvantages) - 

हालांकि फायदेमंद, लेकिन कुछ कमियां भी हैं:

स्थान-विशिष्ट: केवल गर्म स्प्रिंग्स या ज्वालामुखी क्षेत्रों में संभव, जैसे भारत के हिमालय में।

उच्च प्रारंभिक लागत: ड्रिलिंग और सेटअप महंगा (प्रति MW $2-5 मिलियन), जो छोटे प्रोजेक्ट्स के लिए चुनौतीपूर्ण है।

पर्यावरण प्रभाव: भाप से H2S जैसी गैसें निकल सकती हैं, जल प्रदूषण या संसाधन क्षय का जोखिम। भूकंपीय गतिविधियां बढ़ा सकती है।

संसाधन सीमाएं: अत्यधिक उपयोग से गर्मी स्रोत कमजोर हो सकता है।

 

जियोथर्मल एनर्जी के तकनीकी पहलू

जियोथर्मल एनर्जी का उपयोग मुख्य रूप से दो तरीकों से किया जाता है: इलेक्ट्रिसिटी उत्पादन और सीधी गर्मी उपयोग। आइए इसे विस्तार से समझें:

इलेक्ट्रिसिटी उत्पादन के लिए तकनीकें:

ड्राई स्टीम पावर प्लांट: यहां गर्म भाप सीधे टर्बाइन को चलाती है। यह सबसे सरल लेकिन दुर्लभ तरीका है, क्योंकि शुद्ध भाप कम मिलती है।

फ्लैश स्टीम पावर प्लांट: सबसे आम तरीका। उच्च दबाव वाले गर्म पानी को कम दबाव वाले टैंक में भेजा जाता है, जहां यह भाप में बदल जाता है। यह भाप टर्बाइन घुमाती है और बिजली बनाती है। पानी को फिर से इंजेक्ट किया जाता है ताकि संसाधन टिकाऊ रहे।

बाइनरी साइकिल पावर प्लांट: कम तापमान वाले संसाधनों (100-150°C) के लिए। यहां गर्म पानी से गर्मी लेकर एक द्वितीयक द्रव (जैसे आइसोब्यूटेन) को भाप बनाया जाता है, जो टर्बाइन चलाता है। यह पर्यावरण-अनुकूल है क्योंकि कोई सीधा उत्सर्जन नहीं होता।

ये प्लांट आमतौर पर 5-100 MW क्षमता के होते हैं और 24/7 काम करते हैं, जो इसे बेसलोड पावर बनाता है।

सीधी गर्मी उपयोग:

ग्राउंड सोर्स हीट पंप (GSHP): पृथ्वी की स्थिर तापमान (10-15°C) का उपयोग करके घरों को गर्म या ठंडा किया जाता है। गर्मियों में गर्मी को जमीन में डाला जाता है, सर्दियों में निकाला जाता है।

औद्योगिक उपयोग: ग्रीनहाउस हीटिंग, मछली पालन या खनन में।

चुनौतियां: उच्च प्रारंभिक लागत (ड्रिलिंग महंगी), भूकंपीय जोखिम और जल संसाधनों का प्रबंधन। लेकिन लंबे समय में यह सस्ता पड़ता है।

 

भारत में चल रहे जियोथर्मल एनर्जी प्रोजेक्ट्स - 

 

भारत में जियोथर्मल एनर्जी के विकास को हाल ही में गति मिली है, खासकर 15 सितंबर 2025 को लॉन्च हुई राष्ट्रीय जियोथर्मल एनर्जी नीति के बाद। इस नीति के तहत, न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी मिनिस्ट्री (MNRE) ने पांच प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी है, जो मुख्य रूप से पायलट और रिसोर्स असेसमेंट स्तर पर हैं। ये प्रोजेक्ट्स अन्वेषण के शुरुआती चरण में हैं और व्यवहार्यता का मूल्यांकन कर रहे हैं। नीति प्रोजेक्ट्स को 30 साल तक सपोर्ट देगी, जिसमें एक्सटेंशन की संभावना भी है। वर्तमान में कोई बड़ा व्यावसायिक प्लांट ऑपरेशनल नहीं है, लेकिन पायलट स्तर पर काम चल रहा है। कुल क्षमता का अनुमान 10,600 MW है, जो 10 मिलियन घरों को बिजली दे सकता है। 

 

मुख्य चल रहे या प्लान्ड प्रोजेक्ट्स - 

भारत में 381 हॉट स्प्रिंग्स की पहचान की गई है, जो 10 जियोथर्मल प्रांतों में फैले हैं। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) ने इनकी मैपिंग की है, और ये मुख्य रूप से हिमालय क्षेत्र में हैं जहां रिजर्वायर तापमान 200°C तक पहुंच सकता है। अन्य क्षेत्र मीडियम-लो एन्थाल्पी (100-180°C) वाले हैं, जो हीटिंग/कूलिंग के लिए उपयुक्त हैं।

 नीचे कुछ प्रमुख प्रोजेक्ट्स और साइट्स की जानकारी है: -

पुगा वैली प्रोजेक्ट, लद्दाख:

यह भारत का पहला जियोथर्मल प्रोजेक्ट है, जो 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

स्टेटस: पायलट स्तर पर, ड्रिलिंग ऑपरेशन्स 2025 की शुरुआत में फिर से शुरू होने वाले हैं। लक्ष्य थर्मल सोर्स तक पहुंचना है।

क्षमता: कुल पोटेंशियल का हिस्सा, लेकिन स्पेसिफिक कैपेसिटी अभी निर्धारित नहीं।

अन्य डिटेल्स: लद्दाख में अन्य साइट्स जैसे चुमाथांग, गैक, डेमचोक, नुब्रा (पनामिक) और गल्हर भी शामिल हैं। ये MNRE के पायलट प्रोजेक्ट्स का हिस्सा हो सकते हैं।

फोकस: बिजली उत्पादन और हीटिंग के लिए। 

 

उत्तराखंड में प्रोजेक्ट्स:

उत्तराखंड ने 2025 में भारत की पहली स्टेट-लेवल जियोथर्मल एनर्जी नीति लॉन्च की है।

स्टेटस: शुरुआती चरण में, रिसोर्स मैपिंग और इन्वेस्टर कॉन्फिडेंस बिल्डिंग पर फोकस। हिमालयन हॉट स्प्रिंग्स का उपयोग।

साइट्स: टपोबन, गारी, जोशीमठ, जूमा, जमुनोत्री, गंगनानी, बेदा, जोती, न्यु, दार, भेती आदि।

डिटेल्स: बेसलोड रिन्यूएबल पावर के लिए, जिसमें पावर जनरेशन, हीटिंग/कूलिंग और कम्युनिटी एप्लीकेशन्स शामिल। यह स्केलेबल पाथवे का पहला उदाहरण बन सकता है।

 

MNRE द्वारा मंजूर पांच प्रोजेक्ट्स:

ये पायलट इनिशिएटिव्स और रिसोर्स असेसमेंट प्रोजेक्ट्स हैं।

स्टेटस: शुरुआती स्टेज, एक्सप्लोरेशन और वायबिलिटी असेसमेंट पर काम।

लोकेशन्स: स्पेसिफिक नहीं बताए गए, लेकिन लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश (मणिकरण, कासोल, टट्टापानी), जम्मू-कश्मीर (सिधु), गुजरात (ढोलेरा, तुवा), और अन्य राज्यों जैसे अरुणाचल, सिक्किम, हरियाणा, बिहार आदि की साइट्स शामिल हो सकती हैं।

अन्य डिटेल्स: नीति के तहत, जियोथर्मल डेटा रिपॉजिटरी बनाया जा रहा है, जिसमें ऑयल-गैस इंडस्ट्री के साथ कोलैबोरेशन। एबैंडन्ड ऑयल वेल्स को रीयूज करने की प्लानिंग। R&D के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस और कैपेसिटी बिल्डिंग।

 

अन्य महत्वपूर्ण पहलू

नीति के लाभ: 100% FDI की अनुमति, टैक्स हॉलिडे, इंपोर्ट ड्यूटी छूट, वायबिलिटी गैप फंडिंग। स्टेट गवर्नमेंट्स साइट्स अलॉट करेंगी (एक्सप्लोरेशन के लिए 5 साल, डेवलपमेंट के लिए 30 साल)। सिंगल-विंडो क्लियरेंस सिस्टम।

चुनौतियां: उच्च इनिशियल कॉस्ट, ड्रिलिंग रिस्क, और टेक्निकल एक्सपर्टीज की कमी। लेकिन नीति रिस्क-शेयरिंग और इंटरनेशनल पार्टनरशिप्स से निपटेगी।

भविष्य: 2050 तक ग्लोबल डिमांड का 15% जियोथर्मल से पूरा हो सकता है, और भारत इसमें योगदान देगा। MNRE नोडल बॉडी है, जो IREDA के जरिए सॉफ्ट लोन्स देगी।

 

भारत में चुनौतियां (Challenges in India)

भारत में जियोथर्मल पोटेंशियल 10 GW है, लेकिन विकास धीमा है। मुख्य चुनौतियां:

भौगोलिक और पहुंच की समस्या: अधिकांश संसाधन हिमालय (लद्दाख, उत्तराखंड) जैसे दुर्गम क्षेत्रों में, जहां लॉजिस्टिक्स और मौसम बाधा डालते हैं।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी प्रभाव: हिमालयी जैव-विविधता को खतरा, जैसे जल स्रोतों का प्रदूषण या भूस्खलन जोखिम।

आर्थिक और तकनीकी बाधाएं: उच्च लागत (ड्रिलिंग में 60% खर्च), विशेषज्ञता की कमी और निवेशकों का हिचकिचाहट। 2025 तक केवल पायलट प्रोजेक्ट्स ही।

नीतिगत और नियामक मुद्दे: भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण क्लियरेंस में देरी।

समाधान (Solutions)

भारत सरकार और विशेषज्ञ इन चुनौतियों से निपटने के लिए कदम उठा रही है:

नीतिगत समर्थन: 15 सितंबर 2025 की राष्ट्रीय जियोथर्मल नीति से सब्सिडी, टैक्स छूट, 100% FDI और 30-वर्षीय लीज। वायबिलिटी गैप फंडिंग से लागत कम होगी।

तकनीकी उन्नति: हाइब्रिड सिस्टम (सोलर-जियोथर्मल) और EGS (एन्हांस्ड जियोथर्मल सिस्टम) से स्थान सीमाओं को दूर करें। R&D के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग: US, आइसलैंड से तकनीक ट्रांसफर। अबंधित ऑयल वेल्स को रीयूज करके लागत घटाएं (जैसे बारमेर प्रोजेक्ट)।

पर्यावरण प्रबंधन: सख्त मॉनिटरिंग, रीयूज तकनीकें और लोकल कम्युनिटी इन्वॉल्वमेंट से प्रभाव कम करें। निवेश बढ़ाने के लिए IREDA लोन्स।

 

भारत में जियोथर्मल एनर्जी के हालिया अपडेट्स (सितंबर 2025)

 

15 सितंबर 2025 को लॉन्च हुई राष्ट्रीय जियोथर्मल एनर्जी नीति 2025 के तहत, सरकार ने पांच नए प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी है। ये मुख्य रूप से पायलट इनिशिएटिव्स और रिसोर्स असेसमेंट पर फोकस्ड हैं, जो जियोथर्मल एनर्जी की व्यवहार्यता टेस्ट करेंगे। ये प्रोजेक्ट्स भारत के नेट जीरो 2070 लक्ष्य को सपोर्ट करेंगे और रिन्यूएबल एनर्जी को डाइवर्सिफाई करेंगे। कुल पोटेंशियल 10 GW है, जो 10 मिलियन घरों को बिजली दे सकता है।

पांच मंजूर प्रोजेक्ट्स की डिटेल्स

ये प्रोजेक्ट्स MNRE द्वारा सैंक्शन किए गए हैं, और इनमें इंटरनेशनल कोलैबोरेशन (जैसे US, आइसलैंड, नॉर्वे) की संभावना है। सब्सिडी सपोर्ट (जैसे वायबिलिटी गैप फंडिंग) और टैक्स बेनिफिट्स भी मिल सकते हैं। यहां मुख्य डिटेल्स:

बारमेर जिला, राजस्थान:

स्टेटस: पायलट इनिशिएटिव।

डिटेल्स: वेदांता के अबंधित ऑयल फील्ड्स का उपयोग करके जियोथर्मल एनर्जी हार्नेसिंग। डीप ऑयल वेल्स से बिजली उत्पादन पर फोकस।

बजट: लगभग 15 करोड़ रुपये।

उद्देश्य: अबंधित ऑयल वेल्स को रीयूज करके बिजली जनरेशन।

तवांग, अरुणाचल प्रदेश:

स्टेटस: इम्प्लीमेंटेशन चरण में।

डिटेल्स: आर्मी बेस के लिए जियोथर्मल हीटिंग सिस्टम।

उद्देश्य: डायरेक्ट-यूज एप्लीकेशन, जैसे स्पेस हीटिंग।

कूलिंग वैलिडेशन प्रोजेक्ट (लोकेशन: निर्दिष्ट नहीं):

स्टेटस: कॉन्सेप्ट वैलिडेशन।

डिटेल्स: जियोथर्मल एनर्जी का उपयोग कूलिंग सिस्टम्स के लिए।

उद्देश्य: ग्राउंड सोर्स हीट पंप्स (GSHP) से स्पेस कूलिंग टेस्ट।

शैलो जियोथर्मल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (लोकेशन: निर्दिष्ट नहीं):

स्टेटस: डेवलपमेंट चरण।

डिटेल्स: शैलो (उथले) जियोथर्मल रिसोर्सेज की क्षमता विकसित करना।

उद्देश्य: रिसोर्स मैपिंग और लोकल एप्लीकेशन्स, जैसे एग्रीकल्चर या एक्वाकल्चर।

सोलर-जियोथर्मल इंटीग्रेटेड पावर जनरेशन प्रोजेक्ट (लोकेशन: निर्दिष्ट नहीं):

स्टेटस: डेवलपमेंट चरण।

डिटेल्स: सोलर और जियोथर्मल को मिलाकर बिजली उत्पादन।

उद्देश्य: हाइब्रिड रिन्यूएबल सिस्टम डेवलप करना।

ये प्रोजेक्ट्स अभी शुरुआती स्टेज में हैं, और MNRE प्रोग्रेस मॉनिटर कर रही है। स्टेट गवर्नमेंट्स, ऑयल-गैस कंपनियां और रिसर्च इंस्टीट्यूट्स के साथ पार्टनरशिप पर जोर है।

अन्य चल रहे प्रोजेक्ट्स का अपडेट

पुगा वैली, लद्दाख: ड्रिलिंग 2025 की शुरुआत में रीस्टार्ट हो चुकी है। यह भारत का पहला बड़ा पायलट है, फोकस बिजली और हीटिंग पर।

उत्तराखंड: स्टेट-लेवल नीति लॉन्च हो चुकी है। साइट्स जैसे टपोबन, जोशीमठ आदि पर रिसोर्स मैपिंग चल रही है।

कुल 381 हॉट स्प्रिंग्स और 10 प्रांत (जैसे हिमाचल प्रदेश - मणिकरण, गुजरात - कंबे) पर काम जारी।

नीति के तहत, प्रोजेक्ट्स को 30 साल तक सपोर्ट मिलेगा, जिसमें एक्सटेंशन की गुंजाइश है।

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